गाय चौरासी लाख योनियों में अंतिम योनि आने के बाद मनुष्य योनि मिलती है।इसलिए बचाना है गाय को

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गाय चौरासी लाख योनियों में अंतिम योनि आने के बाद मनुष्य योनि मिलती है।इसलिए बचाना है गाय को

यजुर्वेद के दूसरे भाग शुक्ल यजुर्वेद में गाय और कृषि विज्ञान के महत्व को समझाते हुए याज्ञवल्क्य ऋषि कहते हैं, कि आत्मा चौरासी लाख योनियों में विचरते हुए पेड़-पौधे, कीट-पतंग और पशु-पक्षी आदि की योनियों से गुजरती हुई, सबसे अंत में गाय की योनि में प्रवेश करती है और गाय का जीवन जीती है। गाय की योनि में आकर आत्मा इतनी विकसित हो चुकी होती है कि वह अगले जन्म में आसानी से मनुष्य की योनि में प्रवेश कर जाती है। यानि गाय का शरीर पशु के रुप में आत्मा का अंतिम शरीर होता है। गाय पशु और मनुष्य के बीच की एक ‘कड़ी’ है। गाय में आकर आत्मा उस जगह पर आ खड़ी होती है, जहां से उसके लिए अगले जन्म में मनुष्य योनि में आना आसान हो जाता है। अर्थात गाय का शरीर आत्मा के लिए एक सीढी है,पशु से मनुष्य बनने के लिये। लेकिन जो व्यक्ति गाय पर अत्याचार करता है,ओर उस गाय को काटकर मारता है। उसे भी इन्हीं योनियों में गुजर कर गाय योनि में आना पड़ता है। कटने के लिए। जिस तरह से गाय को काटी जाती है।उसी तरह उसे भी कटना पड़ता है। फिर भी मनुष्य योनि प्राप्त नहीं कर पाता।यह उसके गौ अत्याचार का फल है। जो उसे मनुष्य नहीं बनने देता। क्योंकि गौ माता के शरीर में सभी देवताओं का वास हैं। जो पापियों के अत्याचारों को देखते रहते हैं। इसलिए अत्याचारियों को उनके अत्याचार का फल तो भुगतना पड़ता है। यही कारण रहा है कि भगवान श्रीकृष्ण को गाय अति प्रिय रही है और उन्होंने सदेव गाय की रक्षा और सेवा की है। और इसीलिए हमारे सनातन धर्म में गाय को इतना महत्व दिया जाता है। उसकी पूजा करके स्वागत करते हुए उस आत्मा को धन्यवाद दिया जाता है,कि धन्य है तू जो गाय तक आ पहुंची है। उसे संबल दिया जाता है, कि हम भी एक समय वहीं थे जहां आज तू खड़ी है। अब तेरा अगला जन्म मनुष्य का है,हम तेरी पूरी मदद करेंगे,ताकि तू मनुष्य रूप में आकर स्वयं को मुक्त कर सके। घर,आश्रम और गौ- शालाओं में गंगा,गीता या सरस्वती,मंगला,गोरी आदि नाम देकर उसका व्यक्तित्व निर्मित किया जाता रहा है। ताकि उसे अपने होने का भाव बना रहे,वह स्वयं को हमारे परिवार का हिस्सा समझने लगे जो उसके मनुष्य जन्म में सहयोगी हो। बेटी के साथ ही गाय की बछिया भी बड़ी होती जाती थी और दोनों में खूब प्रेम हो जाता अतः बेटी के साथ ही गाय को भी विदा कर दिया जाता था ताकी बेटी को लगे कि पीहर का कोई उसके साथ है। और वह जीवन भर उसकी देखभाल कर सके। गाय को रोटी देकर उसे रोटी के स्वाद से परिचित करवाना शुरू कर दिया जाता है,ताकि रोटी का यह स्वाद उसे मनुष्य योनि में आने के लिए आकर्षित करता रहे। रोटी का स्वाद, रोटी की खुश्बू उस आत्मा को घर में खींचेगी और वह कोरी और पवित्र आत्मा हमारे घर में मनुष्य के रूप में जन्म ले सकेगी। यही कारण है कि गाय को रोजाना रोटी देने का नियम बनाया गया है। लेकिन ऋषि कहते हैं कि यह तभी संभव होगा,जब गाय को अपना पूरा जीवन जीने दिया जाएगा। वह अपनी स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हो, न कि उसकी हत्या हो? गाय तक आते-आते आत्मा का जो विकास हुआ है,उस विकास को आगे गति देने के लिए हमें गाय को अपना पूरा जीवन जीने में उसकी मदद करनी होगी। उसकी उम्र पूरी हो,वह अधूरा जीवन नहीं जिये।उसकी हत्या करने से उसकी मनुष्य योनि में प्रवेश करने की यात्रा बाधित होगी क्योंकि गाय का ‘पूरा’ जीवन जीने के बाद ही उसका मनुष्य योनि में प्रवेश होगा। यदि उसकी हत्या होती है तो वह फिर से पशु योनि में लौट जायेगी,और हो सकता है वह दूसरे हिंसक पशु में लौट जाये? इसलिए गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए।गाय का वध करके हम एक आत्मा का पशु योनि से मनुष्य योनि में प्रवेश करने का मार्ग अवरूद्ध कर रहे होते हैं। *गाय को बचाकर हम एक आत्मा की पशु से मनुष्य बनने में मदद करते हैं। इसके बदले में वह अपने दूध से हमें पोषण देती है और गौमूत्र तथा गोबर से हमारी खेती को सुदृढ़ बनाते हुए बछड़े के रूप में दूसरी आत्मा को जन्म देकर अपना ऋण चुकाकर जाती है।* अतः हमें गौ माता की रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए ताकि धर्म की जय हो! अधर्म का नाश हो! प्राणियों में सद्भावना हो! विश्व का कल्याण हो! हर-हर महादेव!

जनहित में जारी

बृजवासी गौ रक्षक सेना के जिलाध्यक्ष नागपाल शर्मा माचाडी़ व सनातन मंदिर चेतना समिति सनातन वैदिक रामराज परिषद्

रिपोर्ट: नागपाल शर्मा- rajasthan tv news 

 
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